ये न हिन्दू जानती है , न जाने मुसलमां ..
है इस से ही चलता, ज़िन्दगी का कारवां ..
कौन लगा सकता है , रोटी की कीमत यहाँ..
है रोटी ही वो पहिया , जिस पे घूमे ये जहाँ..
Wrote this a week ago to reply to someone in office!
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